गाथा (दरकिनार किया हुआ) - 06
................. लगान वृद्धि का निर्णय वापस ले लिया गया।
गुमड़ी निवासी वयोवृद्ध संतु नरेटी कहते हैं कि मेरे दादा जलका नरेटी गांव के पटेल थे जिसे उस समय मोकोड़दम कहा जाता था, उनके पास अक्सर सुखदेव पातर आते और बातचीत करते कि अंग्रेज हमें लूट रहे हैं उनको यहां से भगाना है व सहयोग नहीं देना है, संतु जी बताते हैं कि पातर हल्बा बड़ा झंडा लेकर चलते थे उनके पीछे - पीछे कुछ दूर तक हम लोग भी जाते थे, गांव की गलियों में भारत माता की जय हो झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत गाते थे, वे अपने ही घर से चांवल - दाल लेकर गांव-गांव घूमते थे।
.......... भारत का स्वाभिमानी सपूत सुखदेव पातर कभी किसी के सामने नहीं झुके एक बार भानुप्रतापपुर में स्वराजी झंडा लेकर रैली निकाल रहे थे, उन्हें पोलिटिकल एजेंट जूनियर बहादुर साहब ने रोकने का प्रयास किया लेकिन पातर ने अपनी सीना खोल कर चुनौती देते हुए रैली को आगे बढ़ा दिया, इस बहादुरी के कारण भानुप्रतापपुर अंचल के लोग बड़ी संख्या में सुखदेव पातर से जुड़ने लगे।
............. मेहतरीन मांझी भेलवापानी निवासी बताती हैं कि सुखदेव पातर मेरे नाना हैं, मैं उन्हें के घर पली-बढ़ी हूं इंदरु केंवट, कंगलू कुम्हार, ढ़ोंगिया ठाकुर, चैनू कोवाची, सहंगू गोंड, दारसू गोंड, लिलकंठ पूड़ो, रंजन हल्बा, गुलाब हल्बा, घुरऊ राना सहित कई लोग घर में आते थे, कई बार बैठक होता था हम उनके भोजन - पानी की व्यवस्था करते थे।
....... एक बार सुखदेव पातर को पुलिस पकड़ कर ले गई और जब वे छूटकर आए तो अमोड़ी गांव में पूजा - अर्चना कर बकरे की बलि दी गई , बैठक में अंग्रेजों को भगाने की बात कहते थे।
..................वनांचल में क्रांति का बिगुल फूंकने वाला अमर सिपाही सुखदेव पातर को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के कारण भारत रक्षा कानून के तहत ₹ 25 - 25 का जुर्माना व चार माह सख्त सजा सुनाई गई। जिसकी जानकारी ग्राम भेलवापानी के वीसीएनबी रिकॉर्ड में 17- 04 -1943 की तिथि अंकित है।
...... तात्कालीन सीपी एंड बरार प्रांत के बीहड़ में अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष का शंखनाद करने वाले कुशल संगठक व नेतृत्वकर्ता सुखदेव पातर लोगों में स्वाधीनता के प्रति चेतना जागृत कर संगठित किया। आज भी जन - जन में पातर के कार्यों की चर्चा होती है, उनको जानने वाले लोगों से उनके बारे में जब बात किया जाता है तो सहसा ही उनके चेहरों पर गौरवपूर्ण चमक दिखाई देता है और उत्साहित होकर उनके विचारों, आदर्शों व कार्य को बताने लगते हैं।
............... राऊरवाही का पातर बगीचा जहां स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूरे अंचल के आंदोलनकारी बैठकर रणनीति तय करते थे वहीं झंडा आमा जिसके नीचे सबसे पहले स्वराजी झंडे की पूजा अर्चना की गई थी, ***आज भी सुखदेव पातर हल्बा के त्याग और साहस की कहानी बयां कर रहे हैं।***
......सुखदेव पातर का निधन 9 जनवरी 1962 को हुआ।
........ संचार सुविधा रहित दुर्गम अंचल में अथक मेहनत कर भारत के स्वतंत्रता में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले क्रांतिवीर सुखदेव पातर हल्बा को सादर नमन् ........
.....आइए 9 जनवरी को सुखदेव पातर हल्बा को सादर स्मरण करें💐💐💐
छायाचित्र-:
(1) व्हीसीएनबी रिकार्ड
(2) प्रो. प्रदीप जैन का शोधपत्र
(3) क्रांतिवीर सुखदेव पातर हल्बा
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